"इस क्षण में शांति से जियो और अपने समक्ष मौजूद सुन्दरता को देखो। भविष्य खुद अपना ख्याल रख लेगा.." 20वीं सदी के एक ऐसे योगी जिनके द्वारा कई लोगों ने देश-विदेश में क्रिया योग की दीक्षा प्राप्त की, और अपने जीवन को सवारा श्री परमहंस योगानंद जी का जन्म मुकुन्दलाल घोष के रूप में जन्म 5 जनवरी 1893 में उत्तर प्रदेश गोरखपुर में हुआ था, इनके पिता का नाम भगवती चरण घोष था जो बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे, इनके माता-पिता लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे, जो कि एक महान क्रिया योगी थे। भारत सरकार द्वारा महान योगी परमहंस योगानंद जी महाराज पर सन 1977 में डाक टिकट जारी किये थे।
एक महान क्रिया योगी लाहिड़ी महाशय के बारे में और अधिक जाने.......
परमहंस योगानंद जी- महाराज अपने गुरु के आदेशानुसार सन् 1920 में अमेरिका गये जहाँ इन्होनें क्रिया योग का प्रचार-प्रसार किया इसी वर्ष इन्होनें यहां सेल्फ रियलाजेशन फैलोशिप की स्थापना की जिसका मुख्यालय लाॅस एंजिल्स में है। इस दौरान इन्होनें अनेको यात्राये की। इनका सम्पूर्ण जीवन योग का प्रचार-प्रसार एवं लेखन कार्य में बीता इनके द्वारा लिखी गयी परमहंस योगानंद योगी कथामृत (an autobiography of a yogi) पुस्तक जिसकी लाखों प्रतिया ब्रिकी होने वाली एक आध्यात्मिक पुस्तक थी।
7 मार्च 1952 को अमेरिका में लाॅस एंजिल्स के भारतीय राजदूत विनय के सम्मान में आयोजित भोजन के बाद इन्होनें अपने शरीर का त्याग कर दिया।
मनुष्य अस्तित्व के दो पहलु है एक जो दृश्यमान होता है और दूसरा जो अदृश्यमान रहता है। खुले नेत्रों से सैदेव स्वयं को और वस्तुगत सृष्टि को देखा जा सकता है, इसके विपरीत बंद नेत्रों से आप कुछ नही देख पाते केवल दिखाई देता है, तो अन्धकार शून्य फिर भी चेतना शरीर से अलग रहते हुये भी सम्पूर्ण रुप से सहज और क्रियाशील रहती है।
हिन्दी टाईपिग के लिए देखें
👉 हिंदी टाईपिंग HOME ROW का अभ्यास
0 Comments
thank for reading this article