महाशिवरात्री 2023-महाशिवरात्रि katha

महाशिवरात्री इस वर्ष फाल्गुन मास की त्रयोदशी 17 फरवरी को रात्री 08 बजकर 02 मिनट से प्रारम्भ होगा तथा 18 फरवरी को सुबह 06 बजकर 57 मिनट  से दोपहर 03 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। महाशिवरात्री के दिन पूरी श्रद्धा से जो भक्त भगवान शिव को विल्वपत्र, जल, पुष्प अर्पित करते है। भगवान शिव उनकी सभी मनोकामना को पूर्ण करते है। महाशिवरात्री के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।

महाशिवरात्री की व्रत कथा

एक बार एक शिकारी जिसका नाम चित्रभानु था एक साहूकार का ऋणी होने कारण साहूकार ने शिकारी को बंन्दी बना लिया (इस कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है।) संयोगवश इसी दिन महाशिवरात्रि का पर्व था इस दिन साहूकार ने अपने घर पर पूजा अनुष्ठान आदि कराकर पंडितों द्वारा एक कथा का आयोजन कराया। इस कथा को शिकारी चित्रभानू ने भी श्रवण किया। कथा की समाप्ति के बाद साहूकार ने शिकारी को बुलाया और कहा कि वह अगले दिन ऋण को चुका सकता है। उसने शिकारी को बन्धनमुक्त कर दिया।

 



 


 

इस प्रकार शिकारी शिकार करने के लिए जंगल में चला गया काफी दूर चलने के बाद जब रात्री होने लगी तो शिकारी ने सोचा कही पर विश्राम कर लूँ उसे एक तालाब दिखाई दिया जहाँ पर एक पेड़ था। यह वृक्ष कोई साधारण वृक्ष नही था बल्कि एक बेलपत्र का वृक्ष था। वृक्ष के निचे एक प्राचीन शिंवलिग था। शिकारी पेड़ से देख रहा था कि कोई जंगली जानवर आये तो वह शिकार करे उसे कोई भी शिकार दिखाई न दिया उस समय वह मन ही मन काफी निराश हो गया इस प्रकार वह उस पेड़ की टहनियों की पत्तियों को तोड़ता और फेकता रहा यही क्रम कई घंटो तक चलता रहा। जिस भी बेलपत्र को उसने फेका वह शिवलिंग पर गिरा उस दिन शिकारी को रात्री में भूखा रहना पड़ा जिस कारण उसका व्रत भी हो गया।

इस प्रकार धीरे-धीरे रात्री का समय बीतता गया कुछ समय पश्चात् उसे एक हिरणी दिखाई दी वह अत्धिक खुश हो गया। जैसे ही उसने हिरणी के शिकार करने के लिए धनुष में वाण चढ़ाया तभी हिरणी बोली मुझ पे दया करो अभी में गर्भ से हूँ। मैं जल्द से जल्द अपने बच्चें को जन्म दूंगी और उसके बाद आपके पास स्वंम आ जाऊंगी तब आप मेंरा शिकार कर लेना। अन्यथा तुम्हें दो हत्याओं का पाप लगेगा।

इस प्रकार शिकारी ने हिरणी को छोड़ दिया और फिर विचार करने लगा और उसी तरह पेड़ की तहनियों से पत्तियों को टोड़कर फेकता रहा। जोे पत्तियां शिवलिंग पर जाकर गिरती कुछ ही समय पश्चात् उसे एक दूसरी हिरणी दिखाई दी जो उसके निकट तालाब में पानी पीने के लिए आ रही थी। शिकारी अपने धनुष से तीर चलाने ही वाला था कि हिरणी बोली मुझ पे दया करो मैं अभी ऋतु से निवृत होकर आयी हूँ और एक कामातुर विरहणी हूँ। मैं अपने पति से मिलकर वापस आ जाऊंगी। तब तुम मेरा शिकार कर लेना। इस प्रकार उसने दूसरी हिरणी को भी जाने दिया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया वह पहले कि भाँती- टहनियों से पत्तियों को तोड़ता और निचे शिंवलिग पर फेकता। रात्री काफी बीत चुकी थी रात्री का अंतिम पहर भी बीत गया तभी उसे एक और हिरणी दिखाई दी जो अपने छोटें-छोटें बच्चों के साथ आ रही थी, शिकारी ने हिरणी का शिकार करना चाहा कि तभी हिरणी बोली मेरे पास ये छोटे-छोटे बच्चें है। मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी तब तुम मेरा शिकार कर लेना  शिकारी बोला इससे पहले भी मैं दो हिरणी को छोड़ चुका हूँ लेकिन अब तुम्हें नही छोड़ सकता। हिरणी बोली तुम मेरा विश्वास करों में तुम्हे बचन देती हूँ। कि मैं वापस जरूर आऊगी। इस प्रकार शिकारी को दया आ गयी और उसने हिरणी को जाने दिया। और फिर वह पहले की भाँती पेड़ की टहनियों से पत्तियों को तोडता और फेकता और अपने विचारों में खो गया।

लगभग इसी क्रम में पूरी रात्री बीत चुकी थी सुबह भोर का समय हो चुका था सूर्य की पहली किरण के साथ शिकारी को एक हिरन दिखाई दिया शिकारी बहुत खुश हो गया। और शिकार करने के लिए तैयार हो गया। तभी हिरन बोला मुझे मार दो यदि तुम्ने इससे पहले तीन हिरणीयों को मारा है। मैं अकेला ही जीवित रह कर क्या करूगां। तुम देर मत करो क्योकि इस दुखः को में सहन नही कर पाऊंगा। मैं उन हिरणीयो का पति हूँ और यदि तुम्नें उन तीन हिरणीयों को जीवन दान दिया है। तो मुझे भी जीवन दान दो मैं अपने परिवार से मिलकर वापस आऊंगा। तब तुम मेरा शिकार कर लेना। इस प्रकार शिकारी ने पहले की भाँती इस हिरण को छोड़ दिया, सुबह हो चुकी थी सूर्य भी काफी निकल चूका था।

इस प्रकार शिकारी द्वारा शिवलिंग पर अनेक बेलपत्र की पत्तियों से पूजा, और रात्रीभर भूखा रहने से उसका उपवास का कार्य भी पूरा हो गया था, जिस कारण शिकारी चित्रभानू को भगवान शिव की असीम कृपा का फल प्राप्त हुआ।

दूसरी और तीनों हिरणीयां और हिरण उसके सामने खडे़ थे। ताकि शिकारी उनका शिकार कर पायें लेकिन शिकारी का भगवान शिव की कृपा से हृदय परिवर्तित हो गया। जिस कारण तीनों हिरणीयां और हिरण को एक नया जीवन मिल गया। और शिकारी चित्रभानु को मोक्ष तथा शिवलोक की प्राप्ति हुई।

 

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