दुर्वासा ऋषि की कहानी : durvasa rishi ki kahani

प्राचीनकाल से ही जितने ऋषि- मुनि हुये हुये है, उनका सम्पूर्ण जीवन लोकहित एवं लोककल्याण के लिए रहा है, लेकिल इनमें एक ऋषि थे, ऋषि दुर्वासा जो अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे। इनके क्रोध से मानव, दानव एंव देवता सभी परिचित थे। इन्हें क्रोध दिलाना साक्षात मृत्यु को बुलाने जैसा था।

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दुर्वासा ऋषि जी एवं  भगवान विष्णु भक्त अंबरीश

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार- इक्ष्वांकु वंश के राजा अंबरीश जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे, उनके राज्य में सभी प्रजा सुखी व खुशहाल थे, एक बार राजा अंबरीश ने निर्जला एकादशी व्रत को लेने की ठानी, राजा निर्जला एकादशी व्रत एवं जागरण के बाद द्वादशी व्रत में थे। सभी कार्य सम्पन्न होने के बाद राजा के व्रत खोलने के समय वहाँ ऋषि दुर्वासा आ पहुँचे राजा ने ऋषि से निवेदन किया कि वे भागवन प्रसाद ग्रहण करे। लेकिन ऋषि दुर्वासा ने राजा से कहा कि वे यमुना में स्नान करने के लिए जा रहे है, लौटते समय प्रसाद ग्रहण कर लेगे। 
 
धिरे-धिरे समय बीतता गया राजा ने काफी लंबे समय तक ऋषि का इन्तजार किया, लेकिन वे नही पहुँचे, व्रत को पारण करने का मुर्हुत निकलता जा रहा था, वहाँ उपस्थित ब्राहृामणों ने राजा से कहा कि उन्हें अब अपना व्रत तोड देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद निर्जला एकादशी का मुर्हुत समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार राजा अंबरीश ने अपने ईष्ट का देव का ध्यान कर अपने व्रत का पारण किया। तभी वहाँ ऋषि दुर्वासा आ पहुँचे और राजा पर क्रोधित हो उठे और बोले उन्होनें व्रत का पारण कर उनका अपमान किया है।

इस प्रकार ऋषि दुर्वासा ने क्रोध में आकर अपनी जटा से एक क्रत्या राक्षसी उत्पन्न कर दी जो भगवान विष्णु के परम भक्त अंबरीश को जलाने के लिए तैयार ही थी, कि उसी समय वहाँ भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र प्रकट हो गया, जिसने क्रत्या राक्षसी को भस्म कर दिया तत्पश्चात सुदर्शनचक्र दुर्वासा ऋषि के पीछे जाने लगा।

ऋषि दुर्वासा और सुदर्शनचक्र

ऋषि दुर्वासा अपनी जान बचाने के लिए चौदह लोको में गये लेकिन सुदर्शन चक्र ने उनका वहाँ भी पीछा न छोड़ा तत्पश्चात ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के पास पहुँचे और भगवान शिव से बोले कि वे सुदर्शन चक्र से उनकी जान बचाऐ, भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास भेज दिया, जब ऋषि दुर्वासा भगवान विष्णु के पास पहुँचे और सुदर्शन चक्र से अपनी जान बचाने को कहा तो तब भगवान विष्णु ने ऋषि दुर्वासा से कहा कि उन्होनें सुदर्शनचक्र का भार भक्त अंबरीश को सौपा है, इसलिए तुम्हें भक्त अंबरीश के पास पहुँचकर क्षमा याचना करनी होगी।

ऋषि दुर्वासा अपनी जान बचाने के लिए भागे-भागे भगवान विष्णु के परम भक्त अंबरीश के पास पहुँचे अभी तक भी अंबरीश ने व्रत को तोडने के बाद भी भोजन नही किया था, वे ऋषि दुर्वासा को देखकर खुश हुये और उन्हें भोजन करने को कहा लेकिन ऋषि दुर्वासा बोले कि सुदर्शन चक्र से उनका पीछा छुडाये। इस प्रकार भक्त अंबरीश ने सुदर्शन चक्र को रूकने के लिए कहा। सुदर्शन चक्र पहली की भाँती स्थिर हो गया, तथा ऋषि दुर्वासा की जान बची।

इस प्रकार पौराणिक कथा से ये ज्ञान मिलता है, कि जो क्रोध हमेशा दूसरों का अहित कर सकता है, कभी स्वमं के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है, हमें अकारण ही क्रोध नही करना चाहिए। 


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