वशिष्ठ ऋषि सप्तऋषि में से एक ऋषि है। (सप्तऋषि सात ऋषियों का एक समूह है- कश्यप ऋषि, अत्री ऋषि, विश्वामित्र, गौतम ऋषि, ऋषि जमदग्नि, ऋषि भारद्वाज और वशिष्ठ ऋषि आदि है।) वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के राज गुरू थे एवं भगवान राम एवं लक्ष्मण के गुरू का श्रेय ऋषि वशिष्ठ को ही जाता है। इनकी पत्नी का नाम अरुंधती था। वशिष्ठ ऋषि जिनको ब्रह्याजी का मानस पुत्र भी माना जाता है। इनके पास एक दिव्य गाय थी जो वशिष्ठ ऋषि की सभी अवश्यकताओं को पूर्ण करने में समर्थ थी। इनके द्वारा कई श्लोक लिखे गये है, जो आज भी वेदों में देखने को मिलते है।
वशिष्ठ ऋषि का आश्रम
महर्षि वशिष्ठ परमज्ञानी थे, इन्होनें सरस्वती नदी के किनारे गुरुकुल की स्थापना की थी, जहाँ पर हजारों राजकुमार एवं सामान्य छात्र अध्ययन करते थे, इनके रहने ठहरने के लिए गुरुकुल में उचित व्यवस्था थी, महर्षि वशिष्ठ सभी छात्रो को समान दृष्टिकोण से देखते थे, ये गुरुकुल के प्रधानाचार्य थे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आश्रम में एक कुआँ है, जहाँ से सरयु नदी बहती है। अयोध्या नगरी में एक बार सुखा पड गया उस समय यहाँ के राजा इक्ष्वाकु थे, वे शांतिप्रिय राजा थे, सदैव प्रजा का हित चाहते थे, वे अपने राज्य में सूखा पड़ने के कारण अत्यधिक चिंतीत थे, उन्हें कुछ भी सूझ नही रहा था, कि कैसे इस समस्या का हल किया जाय, तब वे वशिष्ठ ऋषि के पास गये और इस आपदा का उपाय बताने का निवेदन किया, उन्होनें राजा को बताया कि उन्हें एक यज्ञ करना होगा, इस प्रकार वशिष्ठ ऋषि ने एक यज्ञ किया यज्ञ के समपन्न होते ही सरयू नदी आश्रम में स्थित कुएँ से बहने लगी। आज भी कई श्रद्धालु एवं यात्री इस कुएँ के दर्शन हेतु जाते है। इस कुएँ को वशिष्ठी एवं इक्वाकी के नाम से भी जाना जाता है।
कामधेनु और महर्षि वशिष्ठ
एक बार विश्वामित्र (राजा कौशिक) महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पहुँचे उनके साथ उनकी सेना भी थी, महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक का सम्मान पूर्वक आदर-सत्कार किया, और आश्रम में रूकने लिए कहाँ लेकिन राजा कौशिक ने सोचा कि वे स्वंम अकेले नही है, उनके साथ अन्य लोग भी है, जिससे इन लोगों का प्रबन्ध करने में ऋषि को काफी परेशानी उठानी पडेगी। उन्होनें महर्षि वशिष्ठ से जाने की अनुमति माँगी इस बात पर महर्षि वशिष्ठ ने उनसे पुनः आग्रह किया कि वे कुछ समय आश्रम में बिताऐ, इस प्रकार राजा कौशिक महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में ठहर गये, आश्रम में महर्षि वशिष्ठ की दिव्य गाय द्वारा उत्तम प्रकार का भोजन प्रदान किया गया। राजा कौशिक (विश्वामित्र) को यह दिव्य गाय बहुत पसंद आयी। उन्होनें महर्षि वशिष्ठ से इस गाय की माँग की लेकिन महर्षि वशिष्ठ ने गाय देने से इनकार कर दिया। राजा कौशिक (विश्वामित्र) द्वारा गाय को बंधित कर दिया गया, दिव्य गाय क्रोधित हुयी और अपने शक्तियों से स्वंम से बन्धन मुक्त कर दिया।
इस प्रकार राजा कौशिक आश्रम से वन में तपस्या के लिए चल दिये जहाँ उन्होनें भगवान शिव का तप किया भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर अनेको अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। आगे चलकर राजा कौशिक विश्वमित्र कहलाये।
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