सप्तऋषि तारामंडल और सप्तऋषि के नाम हिंदी में

रात्री के समय जब तारों की ओर हमारा ध्यान जाता है, तो हमें आकाश में कुछ तारों का समूह दिखाई देता है। इन्हीं तारों को सप्तऋषि मंडल कहा जाता है। दिखने में ये तारे पतंग की आकृती के दिखाई देते है। सप्तऋषि मंडल को रात्री के समय उत्तरी गोलार्ध  में आसानी से देखा जा सकता है। इसे अंग्रेजी में ‘अरसा मेजर’ कहते है। चीन में इसे ‘पे-तेऊ’ तथा अमेरिका एवं कनाडा में इसे ‘बिग डिप्पर’ (बडा चमचा) के नाम से जाना जाता है। सप्तऋषि शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ हुआ, (सप्त+ऋषि ) अर्थात- सात ऋषि। आइए जानते है इन सात ऋषियों के बारे में जिन्हें सप्तऋषि मंडल के नाम से जाना जाता है।

 

 सप्तऋषि के नाम हिंदी में

ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, ऋषि शौनक, ऋषि वामदेव, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज एवं कण्व ऋषि है।

 


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1.  वशिष्ठ ऋषि

वैदिक काल के प्रमुख ऋषि थे, ये सात ऋषियों में से एक महान ऋषि थे, जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था। इनकी पत्नी का नाम अरुन्धती था, इन्हें बह्य्रा जी का मानस पुत्र माना जाता है। ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के गुरु थे, राजा दशरथ की कोई संतान नही थी, गुरु वशिष्ठ के कहने पर उन्होनें यज्ञ किया ताकि उन्हें पुत्र प्राप्ति हो सके। यज्ञ के पश्चात् राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति हुयी। पुत्र भी कोई साधारण नही साक्षात् भगवान नारायण के अवतार भगवान राम इनके गुरु का श्रेय भी ऋषि वरिष्ठ को ही जाता है। 

वशिष्ठ वंश के अनेको ग्रंथ आज भी विद्यमान है। जैसे वशिष्ठ संहिता, वशिष्ठ शिक्षा, वशिष्ठ कल्प, वशिष्ठ पुराण, वशिष्ठ तंत्र, वशिष्ठ श्रादध कल्प, वशिष्ठ स्मृति आदि।

वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में एक कामधेनु गाय थी जो महर्षि वशिष्ठ की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम थी, एक बार विश्वमित्र महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुँचे जहाँ कामधेनु गाय द्वारा प्राप्त भोजन, फल आदि से विश्वामित्र का आदर-सत्कार किया गया, विश्वामित्र को कामधेनु गाय बहुत पसंद आयी और उन्होनें ऋषि वशिष्ठ से इस गाय को मांगा लेकिन महर्षि ने कामधेनु को देने से इनकार कर दिया। जिस कारण दोनों के बीच काफी मतभेद उत्पन्न हो गया। 

2.  विश्वामित्र

विश्वामित्र एक ऋषि बनने से पूर्व बडे़ पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे, ऋषि बनने के पश्चात् इन्होनें गायत्री मंत्र रचना की थी। जिसे आज के समय में भी बहुत ही चमत्कारिक मंत्र माना जाता है। इनकी तपस्या को मेनका द्वारा भंग किया गया था।

इक्ष्वांक्ष वंश में त्रिशंकु के एक राजा थे, जो सशरीर स्वर्ग पहुँचना चाहते थे, जो विश्वमित्र के पास गये और उन्हें अपनी बात बतायी की वह सशरीर स्वर्ग जाना चाहते है, इस बात पर विश्वामित्र ने उन्हें कहा कि तुम मेरी शरण में आये हो मैं तुम्हारी इच्छा को अवश्य पूरा करुगा। इस प्रकार विश्वामित्र ने त्रिशंकु को अपने तपोबल से सशरीर स्वर्ग भेजा लेकिन स्वर्ग से इन्द्रदेव ने त्रिशंकु को पुनः पृथ्वी पर धकेल दिया। विश्वमित्र ने उसे वही ठहरने का आदेश दिया इस प्रकार त्रिशंकु अधर में ही लटक गया। 

3. ऋषि शौनक

विष्णु पुराण के अनुसार ऋषि शौनक गृतसमद के पुत्र थे, ये कात्ययायन और अश्वलायन के गुरु माने जाते है, इन्होनंे उस समय एक गुरुकुल की स्थापना की थी जिसमें दस हजार विद्यार्थी शिक्षा को ग्रहण करते है, जो कि उस समय ऋषियों के लिए गौरव की बात थी। इन्होनें ऋगवेद की बश्कला और शाकला शाखाओं का एकीकरण किया।

4. ऋषि वामदेव

ऋषि वामदेव गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेता है। इन्होनें संगीत की रचना की थी। वेदो के अनुसार इनकी इच्छा मनुष्यों की भाँती जन्म लेने की नही थी, इसलिए इन्होनें माता के पेट को फाडकर जन्म लिया। जब ये माता के गर्भ में थे, उस समय इन्हें अपने पिछले दो पूर्व जन्मों का ज्ञान हो गया था।

5. ऋषि अत्रि

ये ब्रह्या जी के मानस पुत्रों में से एक है, रामायण में भगवान श्रीराम उनके अनुज लक्ष्मण और माता सीता जब अत्री ऋषि के आश्रम में चित्रकुट में गये थे, जिसका विवरण ऋगवेद में मिलता है। इनकी पत्नी का नाम अनुसूइया था, एक बार जब त्रिदेवो ने अनुसूइया की सतिवर्ता की परिक्षा लेनी चाही, जब वहां ऋषि अत्रि मौजूद नहीं थे, अनुसूइया ने अपने तपोबल से तीनों त्रिदेवो (ब्रह्या, विष्णु और महेश) को बालक बना दिया था। पुराणों के अनुसार त्रिदेवो ने माता अनुसूइया को वरदान दिया था, कि वे उनके यहां जन्म लेगे चंद्रमा (ब्रह्या), दत्तात्रेय (विष्णु), दुर्वासा (शिव) के अवतार माने जाते है।

6. ऋषि भारद्वाज

चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ऋषि ने आयुर्वेद का ज्ञान इंद्र से पाया था, इन्होनें आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। इनकी माता का नाम ममता तथा पिता का नाम बृहस्पति था। ऋषि भारद्वाज को ही सर्वप्रथम प्रयाग का प्रथमवासी माना जाता है। इसी जगह पर उन्होनें सबसे बडे़ गुरुकुल की स्थापना की थी। इन्होनंे व्याकरण, धनुर्वेद, आयुर्वेद, यंत्रसर्वस्व, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, एवं पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रथ के रचनाऐ की।

7. कण्व ऋषि

वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे, इन्होनें ही शकुन्तला के पुत्र भरत का पालन पोषण किया था, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

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