कथकली नृत्य का परिचय ¦ कथकली नृत्य पर जानकारी

कथकली केरल राज्य की सबसे पुरानी नृत्य शैली है। कथकली नृत्य में कई पात्र अभिनय करते है, जिसमें प्रत्येक पात्र की भूमिका भिन्न-भिन्न होती है। यह नृत्य बहुत ही उत्तेजक है, जिसमें अभिनय करने वाले कलाकार के शरीर के लगभग प्रत्येक अंक पर पूरे नियंत्रण की ही नही अपितु भावों की भी गहरी संवेदनशीलता की भी आवश्यकता होती है।

 

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कथकली का जन्म केरल के राजदरबारो में हुआ जिसमें कृष्णन आट्टम और रामन आट्टम आदि प्राचीन शैलियों के मूल तत्वों का समावेश है। यह एक शास्त्रीय नृत्य है।

कथकली की कथाओं के पात्र

कथकली में अभिनय करने वाले प्रत्येक पात्रों की अलग-अलग भूमिका होती है, जिसमें महामानव, देव, दानव एवं पशु होते है। इन अभिनय करने वाले पात्र मानव आकार की तुलना में अधिक बडे़ प्रदर्शित की जाती है। इसमें नृर्तक एक एक व्यक्ति या पात्र नही होता अपितु एक वर्ग को प्रदर्शित करता है। जिसमें कौन सा पात्र किस वर्ग का है। उसे उसके रंगों के आधार पर पहचाना जाता है। जिसमें हरे रंग की मुख-सज्जा वाले पात्रों को वीरता, कुलीनता एवं उच्च गुणों का प्रतीक माना जाता है। इसमें कुछ नायक होते है, जैसे पांडवों, कृष्ण, राजानल एवं इंद्र आदि देवताओं की मुख-सज्जा हरे रंग से की जाती हैं। कत्ती मुख-सज्जा वाले पात्रों में हरे रंग बीच में लाल रंग के मूंछों के गोले बने होते है। इस प्रकार की मुख-सज्जा खलनायको की भूमिका निभाने वाले पात्रों की होती है। जैसे- रावण और दुर्योधन आदि।

इसमें अभिनय करने वाले पात्रों की दाढ़ी के रंग के आधार पर पात्रों की पहचान की जाती है। जिन पात्रों की दाढ़ी का रंग लाल होता है। वे बकासुर, दुशासन जैसे खलनायक होते है, एवं जिन पात्रों के दाढ़ी का रंग सफेद होता है। वे सदाचारी जैसे हनुमान जी आदि। तथा जिन अभिनय करने वाले पात्रों के दाढ़ी का रंग काला होता है। वे वनवासियों एवं आदिवासियों की ओर संकेत करते है।

मुख-सज्जा रंग

इसमें मुख-सज्जा का विशेष महत्व है, इसमें जिस पात्रों की मुख-सज्जा का काला रंग होता है। इस प्रकार के अभिनय करने वाले पात्र अनेको राक्षसियों जैसे, हिडिम्बा, सर्पणखा आदि की होती है।
इसके विपरीत मुख-सज्जा में पीले और लाल रंग को मिलाकर जो एक सौम्य चर्म रंग का उपयोग किया जाता है, इस श्रेणी के अभिनय करने वाले पात्रों में राजकुमारी, रानी, कुलीन महिलाएं सीता जैसी अनेक आर्दश नारीयों को प्रदर्शित किया जाता है।

इसमें आट्टकथा (नाटक कथा) के लिए कथाएं पुराणों और महाकाव्यों से ली जाती है। इन्हें संस्कृत पद्य में मलयालम में लिखा जाता है। इसमें जो भी पात्र अभिनय करता है, वह बोलता नही है, अपितु पद संचालन एवं मुद्रा द्वारा गाये जाने वाले पद के साथ तालमेल बैठाते हुये करता है।


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