मोहिनीअट्टम history in hindi

मोहिनीआट्टम भारतनाट्यम, कुचिपुडी और ओड़िसी की तरह ही देवदासी नृत्य की परम्परा है। यहाँ मोहिनी का अर्थ ‘सुुन्दर स्त्री’ तथा अट्टम का अर्थ नृत्य से है, मोहिनीआट्टम में मुख्यतः दो कथायें मिलती है। पहला जब भस्मासुर ने भगवान शिव की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया, कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जायेगा। वरदान को प्राप्त कर भस्मासुर भगवान शिव को ही भस्म करने के लिए आतुर हो गया, तब भगवान विष्णु द्वारा मोहिनी का रूप धारण किया गया, दूसरी कथा सागर मंथन के समय जब विष और अमृत दोनों की प्राप्ति हुई, विष को तो भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाये, अमृत कलश के लिए देवता और राक्षसों में द्वन्द होने लगा।

 

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यदि राक्षस अमृत कलश को पा लेते तो सभी राक्षस अमर हो जाते, और संसार-भर में अपना आतंक फैलाते इस परिस्थिति को सभालने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अर्थात सुन्दर स्त्री का रूप रखा भगवान विष्णु के इस मोहिनी रूप का आकर्षण इतना अधिक था, कि सभी राक्षस उनकी हर बात को मानने के लिए तैयार हो गये, इस प्रकार भगवान विष्णु ने दानवों को मदिरा का पान कराया और देवताओं को अमृतपान कराया।

यह नृत्य एक एकल नृत्य है, इस नृत्य का सर्वप्रथम उल्लेख 16 वीं शताब्दी के मषमंगलम नारायण नम्बूदिरी द्वारा रचित विरचित ‘व्यवहारमाला’ में मिलता है। यह नृत्य प्रारुप में भारतनाट्यम जैसा ही है, तथा ओडिसी नृत्य की भाँती इसमें साधारण वेशभुषा होती है। इस नृत्य में नृतकी सफेद या हल्के सफेद कपड़ो का उपयोग करता है।

 

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