सृष्टि की रचना के समय ब्रह्या जी की छाया से कर्दम ऋषि की उत्पति मानी जाती है। पुराणों के अनुसार ब्रह्या जी के मानस पुत्रों में : मन से मरिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कर्दम, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि की उत्पति हुयी।, इसलिए कर्दम ऋषि जी को ब्रह्या जी का मानस पुत्र माना जाता है।
यद्यपि कर्दम ऋषि गृहस्थ जीवन को नही अपनाना चाहते थे। पिता ब्रह्या जी की आज्ञा का पालन करते हुये कर्दम ऋषि ने स्वंमभुव मनु की द्वितीय पुत्री देवहूति से विवाह कर लिया ताकि सृष्टि का कार्य आगे बढ़ाया जा सके। देवहूति के माता का नाम शतरूपा था। कर्दम ऋषि को देवहूति द्वारा नौ कन्यायें तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई इन कन्याओं का नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति था। तथा इनका एक पुत्र हुआ जिनका नाम कपिल था। जिन्हें साक्षात् भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
कर्दम ऋषि को भगवान नारायण के दर्शन
पिता ब्रह्या की आज्ञा का पालन करते हुये योग्य संतान प्राप्ति हेतु कर्दम ऋषि ने भगवान नारायण की तपस्या प्रारम्भ कर दी। भगवान नारायण उनकी तपस्या से प्रसन्न हुये ओर उन्हें दर्शन दिये तथा स्वंम भगवान विष्णु ने उन्हें मनु एवं शतरूपा की पुत्री देवहूति से विवाह करने की आज्ञा दी।
कर्दम ऋषि यद्यपि भक्ति भरा जीवन जीना चाहते थे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने कर्दम ऋषि को बताया कि देवहूति एक शीलवन्ती कन्या है, ये कन्या तुम्हारे गृहस्थ एवं सन्यास दोनों आश्रमों में पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी।
भगवान विष्णु का अवतरण ऋषि कर्दम के यहां पुत्र के रूप में
जब कर्दम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें देवहूती से विवाह कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का वरदान दिया। तब भगवान विष्णु को करूणा आ गयी, कि मेरा एक भक्त गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर रहा है, जहाँ दुखः ज्यादा है, और सुख कम भगवान विष्णु के आंखो से अश्रु बहने लग गये, अश्रु इतने बहे कि वहां एक अश्रुओं एक सवोवर बन गया यह सरोवर आज भी गुजरात में बिंदु सरोवर के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार भगवान विष्णु ने कर्दम ऋषि को एक और वरदान प्रदान किया कि वे उनके यहां उनके पुत्र के रूप में जन्म लेगे और उनका कल्याण करेगें।
कर्दम ऋषि का विवाह
देवहूति एवं ऋषि कर्दम के विवाह संम्पन होने के पश्चात् देवहूति अपने पति ऋषि कर्दम क आश्रम में रहने लगी। एकबार ऋषि कर्दम प्रभु की भक्ति में इतना ध्यानस्त हो गये। उनकी पत्नी देवहूति नित्य उनकी नित्य सेवा करती। यद्यपि वह एक महलों में रहने वाली थी, परन्तु वह सब कुछ छोड़कर पति की सेवा करती रही। काफी समय बीत चुका था, वे सब कुछ भुल चुके थे, की उन्होनें देवहुति से विवाह भी किया है। जब उनके पति ऋषि कर्दम की आँखे खुली तो उन्होनें देवहूति से पूछा देवी आप कौन हो। इतने दिनों से मेरी सेवा कर रही हो। देवहूति ने कहा कि वे उनकी पत्नी है, उसका विवाह आपके साथ हुआ है। इस प्रकार ऋषि कर्दम को स्मरण हुआ और उन्होनें अपनी से कुछ मांगने के लिए कहा लेकिन उनकी पत्नी ने कहा कि पति की सेवा करना उसका परम धर्म था। इस प्रकार देवहूति ने उन्होनें स्मरण कराया कि उसके पति ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वचन दिया था। इस प्रकार ऋषि कर्दम को याद आया और उन्होनें गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया।
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