देवगुरु बृहस्पति देवताओं के गुरु के है, इनकी पूजा अर्चना का शुभ दिवस गुरुवार माना जाता है, इनके चार हस्त है, जिनके पहले हस्त में रुद्राक्ष माला, दूसरे हस्त में स्वर्ण निर्मित दण्ड, तिसरे हाथ में पात्र तथा चौथा हस्त वर मुद्रा में है। ये गले में सुन्दर माला तथा शिश पर स्वर्ण का सुन्दर मुकट धारण किये हुये है। इनका वाहन स्वर्ण से निर्मित है, ताम्र रंग के घोडे इनके रथ को खिचते है। ये पीले वस्त्र धारण किये हुये कमल आसन पर आसीन रहते है।
देवगुरु बृहस्पति के माता पिता का नाम तथा इनका परिवार
इनके पिता ऋषि अंगिरा तथा माता सुरूपा थी, इनकी तीन पत्नीया थी, शुभा, तारा तथा ममता इनकी जयेष्ठ पत्नी का नाम शुभा था, शुभा ने सात कन्याओं को जन्म दिया, राका, भानुमति, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाल और हविष्मती। दूसरी पत्नी तारा से सात पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुयी, तथा तीसरी पत्नी ने भारद्वाज एवं कच नामक दो पुत्रो को जन्म दिया।
देवगुरु बृहस्पति अत्यंत पराक्रमी है, एकबार इन्होनें इन्द्र को हराकर उनसे गायों को छुडाया था। युद्ध कला में निपुण होने के कारण बडे़-बडे़ योद्धा इनकी पूजा करते है। इन्हें गृह पुरोहित भी कहा जाता है। इनके बिना किसी भी प्रकार का यज्ञ भाग सफल नही माना जाता है। जिस भी व्यक्ति पर देवगुरु बृहस्पति की कृपा होती है, वह बल-बुद्धि तथा धन से संम्पन होता है।
देवगुरु बृहस्पति मंत्र
- ॐ बृं ब्रहस्पतय नम:
शांति के लिए वैदिक मंत्र
- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
पौराणिक मंत्र
- देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम्।
- बुद्धिभूतं त्रिलोकशं तं नमामि बहस्पतिम्।।
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