तुलसीदास एक महाकवि थे। इन्होंने भगवान की भक्ति का गुणगान किया। रामचरित मानस तथा कई अन्य कविताएं इनके द्वारा लिखी गईं तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से अत्यधिक प्रेम करते थे। एक बार जब उनकी पत्नी रत्नावली मायके गयी हुयी थी तो तुलसीदास मध्यरात्री में अंधेरी रात और तुफान और वारिश में अपने ससुराल पहुँच जाते है। वे सांप को रस्सी समझ कर पकड़ लेते है। और अपनी पत्नी रत्नावली से मिलते है। उस समय उनकी पत्नी रत्नावली उनसे कहती है।
“नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत”
अर्थात जितना प्रेम तुम मेरे इस शरीर से करते है। काश इतना प्रेम तुम प्रभु राम से करते तो तुम भवसागर पार हो जाते।
तुलसीदास का जन्म सन् 1511 ई0 में शुकर क्षेत्र जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में स्थित है हुआ था। इसने बचपन का नाम रामबोला था। इन्होंने संस्कृत एवं अवधि भाषा में कई दोहें व कविताए लिखी। इनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम तारक था। परन्तु जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसकी मुत्यु हो गयी। तत्पश्चात् उन्होंने अपनी पत्नी रत्नावली का त्याग कर साधु बन गये। इनका अधिकांश समय वाराणसी, चित्रकूट आदि स्थानों पर बिता। इनकी मुत्यु सन् 1623 ई0 में वाराणसी गंगा नदी आसी घाट पर हुयी।
तुलसीदास के प्रमुख दोहें एव कविताए
1. विनय पत्रिका
2. दोहावली
3. कवितावली
4. हनुमान चालिसा
5. पार्वती मंगल
6. जानकी मंगल
भायं कुभायं अनख आलस हूं ।
नाम जपत मंगल दिसी दस हूं ।।
तुलसी साथी विपत्ती के, विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्य व्रत, राम भरोसे एक ।।
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suppup
ReplyDeletethank for reading this article