क्या इंसान शेर से डरता है। नही ना तो इंसान एक खरपतवार बिच्छू घास से भी डर जाता है। क्या कोई बलवान इससे डरता नही कितना भी निडर हो बिच्छू घास से तो डर ही जायेगा। चलो ये तो हुआ जोक आइए जानते है, बिच्छू घास के बारे मेे—
इस घास के नाम से ऐसा लग रहा है। कि क्या इस घास और बिच्छू का क्या सम्बन्ध है। इस घास को छूने से जलन या झनझनाहट का आभास होता है।
इस घास के नाम से ऐसा लग रहा है। कि क्या इस घास और बिच्छू का क्या सम्बन्ध है। इस घास को छूने से जलन या झनझनाहट का आभास होता है।
बिच्छू घास मुख्तरूप से हिमालयी क्षे़त्रों में पाया जाता है। जो वर्षभर हरा-भरा रहता है। इसका वैज्ञानिक नाम अर्टिका डाईओका है। इसकी पत्तिया किनारों से हल्की कटी सी होती है।
बिच्छू घास को छूने पर जलन या झनझनाहट-
पत्तियों के ऊपर बारीक छोट-छोटे काँटे होते है। इसके अलावा तने पर भी बारिक छोटे-छोटे काँटे होते है। इन्हीं काँटे पर यदि किसी व्यक्ति के अंग का स्पर्श होता है, तो शरीर में एक विशेष प्रकार की जलन या झनझनाहट होने लगती है।
स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग-
आमतौर इसे स्थानीय लोगों द्वारा खरपतवार ही समझा जाता है। इसके उपयोग इस प्रकार है।
- इसकी पत्तियों से ग्रीन वेज बनायी जाती है।
- पशुओं के चारे के रूप भी इसका उपयोग किया जाता है।
- इससे स्थानीय लोगो द्वारा रस्सी आदि भी तैयार की जाती है।
स्थानीय लोगों द्वारा इसे कंडली या सियूँण कहा जाता है। कंडली या सियूँण की मुख्यः दो किसमें पायी जाती है।
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