महाभारत हिन्दु धर्म का एक महान ग्रन्थ है। जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की है। इस महाग्रन्थ में अन्य पात्रों की भाँती देवव्रत की भूमिका भी अहम है। देवव्रत राजा शांतनु तथा गंगा के पुत्र थे, महर्षि वशिष्ठ से इन्होनें शिक्षा प्राप्त की थी। इनका शास्त्र ज्ञान शुक्रचार्य जैसा तथा रण-कौशल परशुराम जैसा था। शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने इन पर बाण बरसाये। इन बाणों से इनका शरीर आर-पार होने के बाबजूद भी ये बाणों की शैय्या पर महाभारत के युद्ध में रहे।
एक बार राजा शांतनु नदी के किनारे खडे़ थे, उन्हें एक सुन्दर युवती दिखाई दी जिसके सौन्दर्य ने राजा शांतनु का मन मोह लिया, नदी के तट पर ये स्त्री स्वंम गंगा थी, राजा शांतनु ने गंगा से विवाह पश्चात् अपनी पत्नी बनने की इच्छा जाहिर की गंगा ने राजा शांतनु से कहा राजन् मुझे आपकी पत्नी होना स्वीकार है, परन्तु मेंरी कुछ शर्ते है। यदि वे आपको मान्य है, तो मैं विवाह के लिए सहमत हूँ।
राजा बोला हाँ "अवश्य" इस प्रकार राजा शांतनु ने गंगा की सभी शर्ते मान ली और कहा कि मैं पूर्ण रूप से अपने वचनो का पालन करुगाँ। कुछ समय पश्चात् गंगा ने कई पुत्रो को जन्म दिया वह जो भी पूत्र होता उसे नदी में बहा देती थी, और वापस राजन् के महल में आ जाती थी। उसे तनिक भी पूत्रो को बहने का अफसोस न था। इस प्रकार राजा शांतनु गंगा के इस प्रकार के व्यवहार से बहुत दुखी थे।
आठवें पुत्र का पालन पोषण किया गया गंगा द्वारा
वह सात बच्चों को इसी प्रकार नदी में एक के बाद एक बहाती रही, जब उसके आठवें पुत्र ने जन्म लिया गंगा उसे भी अन्य बच्चों की भाँती उठाकर नदी में बहाने को जाने लगी, राजा शांतनु यह सहन न कर सका और उसने गंगा से कहा कि तुम कैसी माता हो जो इस प्रकार बिना कारण ही बच्चों को मार दे रही हो इस प्रकार का घृणित कार्य करना क्या तुम्हें शोभा देता है।
गंगा ने जब राजन् की यह बात सुनी तो तो वह मन ही मन मुस्करायी और उसने राजा शांतनु से कहा कि आप अपने वचनों को भूल गये हो, आपको केवल पुत्र से ही लगाव है, मुझसे नही मेरी शर्त के अनुसार अब मैं यहाँ नही रूक सकती आपके इस पुत्र को मैं नदी में नही फेकूँगी इसका पालन-पोषण करके तुम्हें सौंप दूँगी। और इस प्रकार कुछ समय बाद गंगा इस आंठवे पुत्र को लेकर चल दी। इस प्रकार गंगा ने अपने इस आठवें पुत्र को पाला यही तेजस्वी बालक आगे चलकर भीष्म पितामह कहलाये।
गंगा के महल से जाने के बाद राजा शांतनु मन से अशांत हो गये, एक दिन जब राजा शिकार खेलते-खेलते नदी के किनारे पहुँचे तो एक सुन्दर युवक बहती नदी की धारा में बाण चला रहा है। उस युवक के बाणों की बौछार से नदी की धारा (वेग) रूक रही थी। जब राजा शांतनु ने इस दृश्य को देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। राजा उस युवक के बारे में सोच ही रहा था, कि गंगा उसके सामने आकर खड़ी हो गयी। और बोली राजन् आप जिस युवक को देख रहे हो यह हमारा आठवाँ पुत्र देवव्रत है। इस प्रकार शर्त के अनुसार गंगा ने अपने इस आठवें पुत्र को राजा शांतनु को शौप दिया। और राजा शांतनु देवव्रत को अपने साथ महल में ले गये।
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