कण्वाश्रम पवित्र मालिनी नदी के तट पर उत्तराखण्ड के पौडी जनपद में स्थित है, यहाँ से कोटद्वार की दूरी 14 कि0मी0 है कण्वाश्रम जो वैदिककाल से विद्यापीठ था। जिसकी स्थापना लगभग 5500 ई0 में माना जाता है। यह स्थान चक्रवती सम्राट भरत की जन्म स्थली भी है।
महर्षि कण्व द्वारा स्थापित किये गये गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थी न केवल भारतवर्ष से आते थे, अपितु यहाँ विदेशों से भी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आते थे, उस समय इस गुरुकुल में प्रवेश पाना बडे़ ही सौभाग्य की बात समझी जाती थी, इस गुरुकुल में 10,000 से भी अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। यहाँ पर मुख्यरूप से पुराण, वेद-वेदांग दर्शन, ज्योतिष एवं आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती थी।
अभिज्ञान शकुन्तला नाटक में महर्षि कण्वाश्रम का वर्णन
महाकवि कालिदास द्वारा रचित नाटक "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" को संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस नाटक में कण्वाश्रम के बारे सभी ज्ञान दिया गया है, इसमें महर्षि कण्व के आश्रम प्रदेश तथा धर्माचारपरायण के चरित्र को इसमें दिखाया गया है। महर्षि कण्व ने इसी स्थान पर अप्सरा मेनका एवं विश्वामित्र की कन्या शकुन्तला का पालन-पोषण किया था। तथा वे शकुन्तला के धर्मपिता कहलाये थे।
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दुष्यंत एवं शकुन्तला की कथा
एक बार हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त आखेट खेलने के लिए वन में गये, शिकार खेलते-खेलते वे ऋषि कण्व के आश्रम में पहुँचे जो उसी वन में था। वे महर्षि कण्व के दर्शन के लिए आश्रम में गये, उन्होनें आश्रम के बाहर से आवाज लगायी तो एक कन्या आश्रम से बाहर आयी कन्या ने अपना नाम शकुन्तला बताया और कहा कि मैं महर्षि कण्व की पुत्री हूँ, महर्षि कण्व तीर्थ यात्रा पर गये है। राजा ने शकुन्तला से कहा की महर्षि कण्व तो ब्रहृमचारी है, फिर तुम उनकी पुत्री कैसे हो सकती हो,
इस प्रकार शकुन्तला ने बताया कि महर्षि कण्व उसके धर्मपिता है, उनके पिता का नाम विश्वमित्र तथा माता का नाम मेनका है। जैसे ही मेरा जन्म हुआ मेरे माता-पिता ने मुझे वन में छोड़ दिया, महर्षि कण्व की नजर मुझपे पड़ी वे मुझे अपने आश्रम में लाये और मेरा लालन-पालन किया। राजा शकुन्तला से काफी अधिक प्रभावित हुये, उन्होनें शकुन्तला से विवाह का प्रस्ताव रखा, शकुन्तला विवाह के लिए तैयार हो गयी।
इस प्रकार राजा दुष्यन्त से शकुन्तला से गन्धर्व विवाह कर लिया। काफी समय इसी स्थान पर व्यतीत करने के पश्चात् राजा ने शकुन्तला से कहा कि उन्हें अपना राज-पाट भी संभालना और वह अब राज्य हस्तिनापुर लौटेगें।
राजा दुष्यन्त ने शकुन्तला को प्रेम प्रतीक के रूप में स्वर्ण मुद्रिका भेट की और और हस्तिनापुर लौट गये। कुछ समय पश्चात् शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम भरत रखा गया। जो आगे चलकर चक्रवती सम्राट बने, इन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
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