गोपीनाथ जी का मंदिर वृदावन में स्थित है, यह मंदिर वैष्णव समुदाय को समर्पित है। कई वर्षो पहले गोपीनाथ जी का विग्रह जयपुर लाया गया और पुरानी बस्ती में प्रतिष्ठित किया गया। एक बार जब प्रातःकाल भक्त परमानंद स्नान के लिए जा रहे थे, उस समय यमुना के तेज बहाव से तट के कट जाने के कारण तट में से एक सुन्दर गोपीनाथ जी का विग्रह प्राप्त हुआ।
भक्त परमानंद ने इस सुन्दर परम मनोहर श्री विग्रह को प्राप्त किया, तथा इसकी सेवा का भार अपने शिष्य मधुपंडित को सौप दिया। सर्वप्रथम श्री गोपीनाथ जी वशीवत के पास रहते थे, बाद में राठोर वंश के बीकानेर के राजा कल्याणमल के पुत्र रायसिंह ने मंदिर बनवाया और तब से वहाँ पर उनकी पूजा अर्चना होने लगी।
वृंदावन गोपीनाथ मंदिर की मूर्ति को सुरक्षित करने के लिए जयपुर ले जाया गया
मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब के द्वारा मंदिर का अधिकांश भाग क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, मंदिर का केंद्रीय गुबंद तो पूरी तरह नष्ट हो चुका था। इस प्रकार मुगलों के आक्रमण से गोपीनाथ की मूर्ति को सुरक्षित करने के लिए एक कृष्ण भक्त द्वारा इस मूर्ति को जयपुर ले जाया गया। तब से गोपीनाथ की मूर्ति इसी स्थान पर स्थापित है।
इस प्रकार गोपीनाथ एवं राधा रानी के प्रतिकृति को पूजा करते हुये एक नया मंदिर का निर्माण किया गया, तथा नित्यानंद प्रभु की पत्नी जाहृनव ठकुरानी (अनंग-मंजरी) के साथ मूल देवताओं को सुरक्षित रखने के लिए जयपुर ले जाया गया।
गोपीनाथ के पाश्र्व में राधारानी और वाम पाश्र्व में जानहृवी ठकुरानी है, यहा राधा जी की मूर्ति का आकार पहले थोड़ा सा छोटा था। एक दिन जब नित्यानंद प्रभु की दूसरी पत्नी जानहृवा ठकुरानी वृदावन आयी तो उनके मन में विचार आया कि राधा रानी का दर्शन कर लिया जाय। दर्शन करते वक्त उनके मन में विचार आया कि काश राधा जी कुछ बड़ी होती तो दोनों युगल जोड़ी अत्यंत सुन्दर लगती इस प्रकार जानहृवी ठकुरानी को रात्रि में स्वप्न दिखाई दिया जिसमें गोपीनाथ का उन्हें आदेश हुआ कि तुम्हारा विचार अति उत्तम है, तुम शीघ्र गौडदेश जाकर राधा रानी जी की मूर्ति का निर्माण कराओं।
इस प्रकार जानहृवी ठकुरानी ने गोपीनाथ के आदेश का पालन करते हुये नयन नामक भास्कर से प्रिया जी (राधा रानी) के साथ अपनी भी एक प्रतिमा बनाकर वृदावन भेज दी। जानहृवी ठकुरानी को प्रतिष्ठित करने में वहां के पुजारियों ने संकोच व्यक्त किया तब गोपीनाथ ने सपनो में आदेश दिया कि यह मेरी प्रिय अनंगमंजरी (राधा जी की छोटी बहन) है, इन्हें मेरे वाम पार्श्व तथा राधा रानी को पार्श्व में बिठाओं।
प्रत्येक वर्ष इस मंदिर में जान्हवी का महोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है, जहां परमानन्द भट्टाचार्य और मधुपंडित गोस्वामी वंशीवट के पास यमुना के तट पर श्री राधा कृष्ण की अराधना करते थे।
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