मां आनंदमयी एक महान संत थी, इनका जन्म 30 अप्रैल 1886 में जिला ब्रह्यन बारिया जिले के खेऊरा नामक ग्राम में हुआ था। जो कि वर्तमान में बांग्लादेश के हिस्से में है। इनके पिता का नाम श्री बिपिन भट्टाचार्य तथा माता का नाम मोक्षदा सुंदरी था, इनके पिता भगवान विष्णु के उपासक थे। बचपन में इन्हें इनके माता-पिता द्वारा निर्मला नाम से पुकारा जाता है। इनके पिता मूल रूप स त्रिपुरा के विद्याकुट के रहने वाले थे, और एक वैष्णव गायक थे, यद्यपि इनका परिवार गरीबी में रहता था। निर्मला याने मां आनंदमयी ने 2-4 महीनों के लिए सुल्तानपुर और खियोरा गांव में अध्ययन किया। इनके कई अनुयायियों द्वारा इनके द्वारा किये गये चमत्कारों को श्रेय दिया गया।
वैवाहिक जीवन
जब ये 13 वर्ष की थी तब इनका विवाह विक्रमपुर के रमानी मोहन चक्रवर्ती के साथ कर दिया लगभग 5 वर्षो तक ये अपने चचेरे भाई के यहां रही जहां पर इन्होनें अपना अधिकांश समय दिव्य ध्यान में बिताया। सर्वप्रथम एक व्यक्ति ने इन्हें मां कहकर पुकारा ये व्यक्ति इन्हें सुबह-शाम प्रणाम किया करता था। ये जब भी वैवाहिक जीवन के बारे में सोचते इस प्रकार का विचार आते ही इनका शरीर मृत समान हो जाता था।
17 वर्ष की आयु में ये अपने पति के साथ ओष्ठ ग्राम में रहने लगी, और कुछ समय पश्चात् ये यहां से बाजितपुर चले गये जहाँ पर ये लगभग 6 वर्ष तक रहे। 27 अगस्त 1982 को 86 वर्ष की आयु में आनंदमयी मां उत्तराखण्ड के देहरादून में समाधि लेकर परमधाम को चले गये। कुछ समय पश्चात् हरिद्वार के कनखल आश्रम में उनकी समाधि स्थल को बनाया गया।
चैतन्य महाप्रभु भक्तिकाल के संतो में प्रमुख संत
प्रमुख पुस्तके
1. अलेक्जेंडर लिपस्की, ओरिएंट बुक डिस्ट्रीब्यूटर्स 1983 व्दारा श्री आनंदमयी मॉ का जीवन और शिक्षा
2. 1999 मे ऑक्साफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लिसा लासेल हॉलस्ट्रॉम व्दारा मदर ऑफ ब्लिस
3. एक योगी की आत्मकथा : योगानंद परमहंस
4. आनंदमयी मॉ का अनुकंपा स्पर्श : चौधरी नारायण
5. श्री मा आनंदमयी के साथ सहयोग मे दत्ता अमूल्य कुमार
6. रे जे मदर असा रिवील्डा टू मी, भाईजी
7. श्री मा आनंदमयी गिरी : गुरुप्रिया आनंद
8. श्री मा आनंदमयी के साथ मेरे दिन मुकर्जी बिथिका 2002।
माँ आनंदमयी के विचार (आनंदमयी माँ कोट्स)
वास्तविकता वाणी और विचार से परे है। केवल वही कहा जा रहा है जो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। लेकिन जो भाषा में नहीं डाला जा सकता वह वास्तव में वह है जो है।
आनंदमयी माँ
जो लोग वास्तविकता के नशे में रहना चाहते हैं, उन्हें कृत्रिम नशीले पदार्थों की आवश्यकता नहीं होती है। झूठी बातों में लिप्त होने से मिथ्यात्व ही बढ़ेगा, क्योंकि हर दिशा वास्तव में अनंत है। जो लोग वास्तव में वास्तविक वस्तु की इच्छा रखते हैं वे अपनी साधना में प्रगति के लिए बड़ी तीव्रता के साथ स्वयं आगे बढ़ते हैं।
आनंदमयी माँ
वह कौन है जो प्यार करता है और जो पीड़ित है, वह अकेले ही अपने साथ एक नाटक का मंचन करता है, उसे बचाने के लिए कौन मौजूद है। व्यक्ति को कष्ट होता है क्योंकि वह द्वैत को मानता है। यह द्वैत है जो सभी दुखों और दुखों का कारण बनता है। हर जगह और हर चीज में एक को खोजो और दर्द और पीड़ा का अंत हो जाएगा।
आनंदमयी माँ
दैवीय सुख यहाँ तक कि इसके एक दाने का सबसे छोटा कण भीए फिर कभी नहीं छोड़ताय और जब कोई चीजों के सार को प्राप्त करता है और अपने आप को पाता है, यह सर्वोच्च सुख है। जब मिल जाता है तो और कुछ नहीं मिलता। कमी की भावना अब और नहीं जागेगी, और हृदय की पीड़ा हमेशा के लिए शांत हो जाएगी। खंडित सुख से संतुष्ट न हों, जो भाग्य के झटके और प्रहार से हमेशा बाधित होता है, लेकिन पूर्ण बनोए और पूर्णता को प्राप्त करके स्वयं बनो।
आनंदमयी माँ
जब मन सांसारिक इच्छाओं से भरा होता है, तो मन को भ्रमित करना उनका स्वभाव है। मन को बाहरी चीजों से हटाकर भीतर की ओर मोड़ो।
आनंदमयी माँ
न जाने कितनी जिंदगियां बरबाद हो जाती हैं, उम्र दर उम्र, अंतहीन आने-जाने में। पता करें कि आप कौन हैं!
आनंदमयी माँ
क्योंकि जो मुझे जानता है, मैं उसके साथ एक हूं;
जो मुझे जानना चाहता है,
मैं उसके बहुत करीब हूं;
और जो मुझे नहीं जानता उसके लिए,
मैं उसके सामने एक भिखारी हूं।
आनंदमयी माँ
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