महर्षि अरविंद : एक कवि, एक दार्शनिक होने साथ-साथ एक महान योगी भी थे।

श्री अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 ई0 को कोलकता में हुआ, इनका जन्म एक प्रतिष्ठित एवं धनी परिवार में हुआ था, इनके पिता का नाम के0डी0 घोष तथा माता का नाम स्वमलता था, इनके पिता एक डाॅक्टर थे, राज नारायण बोस जो कि बंगाली साहित्य के जाने-माने नेता है, जो अरविन्द घोष के मामा जी थे, अरविन्द जी एक कवि, स्वतंत्रता सेनानी, योगी तथा महान दार्शनिक थे। ये कवि होने के साथ-साथ गुरु भी थे।

इन्होनें अपनी युवा अवस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया किन्तु बाद में एक योगी बन गये। इनके प्रमुख शिष्य नलिनि कान्त गुप्त, चम्पकलाल, कैखुसरो दादाभाई सेठना, निरोदबरन, सतप्रेम, इन्द्र सेन, पवित्र, एम पी पण्डित, प्रणब आदि थे।

 

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जब ये 5 साल के थे, तो इन्हें दार्जिलिंग में लोरेटो कान्वेंट स्कूल में भेजा गया, 2 साल यहां अध्ययन करने पश्चात् इन्हें उच्चशिक्षा के लिए इसके भाई के साथ इग्लैण्ड भेजा गया, इन्होनें अपनी पढ़ाई लंदन के सेंट पाल स्कूल में की सन् 1890 में जब ये 18 साल के थे, तब इन्हें कैंब्रिज में प्रवेश मिला जहाँ ये यूरोपीय क्लासिक्स के रूप में प्रतिष्ठ हुये। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए इन्होनें कैब्रिज में रहते हुये, आइएएस (IAS) के लिए आवेदन किया तथा सन् 1890 में आइएएस (IAS) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु घुडसवारी के इक्जाम में असफल होने कारण इन्हें भारत सरकार द्वारा सिविल सेवा में प्रवेश की अनुमति नही मिली।

सन् 1893 में जब महर्षि अरविंद भारत आये तो इनकी नियुक्ति बड़ौदा में एक राजकीय विद्यालय में उप प्रधानाचार्य के पद पर हुयी जहाँ इन्हें 750 रू0 का वेतन मिलता था। उन्हें पहले से ग्रीक, फ्रेंच और लेटिन भाषा का तो अच्छा ज्ञान था ही यहां पर उन्होनें दर्शन शास्त्र, बंगाली साहित्य, संस्कृत और राजनितिक विज्ञान का गहन अध्ययन किया। 

सन् 1905 में जब बंगाल का विभाजन हो रहा था, जो कि इन्हें बिल्कुल भी स्वीकार नही था इसलिए इन्होनें आन्दोलन में भाग लिया और नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। और इन्होनें अंग्रेज़ी दैनिक पत्रिका वन्देमातरम् का प्रकाशन किया जिसमें उन्होनें व्यंगात्मक लेख प्रकाशित किये जो मुख्य रूप से ब्रिटिश समान, ब्रिटिश न्यायालय तथा सभी प्रकार के ब्रिटिश वस्तुओं के खिलाफ था। सन् 1906 में जब बंग-भंग का आन्दोलन चल रहा था वे बड़ौदा से कोलकता आये और जनता को जागरूप करने के लिए ब्रिटिश शासन के विरोध में भाषण दिये। 

इस दौरान अरविन्द जी के जीवन में एक विचित्र मोड़ आया उन्हें सन् 1908-09 में एक वर्ष के लिए अलीपुर बम कांड में राजद्रोह करने के आरोप में जेल जाना पड़ा इस दौरान इन्होनें भगवत गीता का अध्ययन किया तथा साथ ही योग एवं ध्यान में स्वमं निपुण बनाया। माना जाता है, कि इस दौरान उन्हें भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हुये, प्रभु ने उन्हें राजनीतिक छोड़ने को कहा, जेल से रिहा होने के बाद ये कोलकता से पांडिचेरी में आकर बस गये यहां शुरूआत में ये अपने एक मित्र के साथ रहे धिरे-धिरे जब मित्रों की संख्या बढ़ गयी तब इन्होनें एक आश्रम का निर्माण किया।

ततपश्चात् इन्होनें पांडिचेरी में 4 वर्ष तक योग-ध्यान किया, तथा सन् 1914 में इन्होनें आर्य नामक दार्शनिक मासिक पत्रिका का संपादन किया, इनकी प्रमुख कृतिया लेटर्स ऑन योगा, (letters on yoga) द मदर, सावित्री, योग समन्वय, योगिक साधन, दिव्य जीवन है।

5 सितम्बर 1950 को महर्षि अरविन्द निधन हो गया इनका अंतिम संस्कार नही किया गया इन्हें इनके ही आश्रम में समाधी दी गयी।

 

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